संजीवनी बूटी से कम नहीं है लेह-लद्दाख में मिलने वाला ये पौधा

संजीवनी बूटी से कम नहीं है लेह-लद्दाख में मिलने वाला ये पौधा

सेहतराग टीम

लेह-लद्दाख में सैनिकों और स्थानीय लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले सोलो पौधे को गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) के बायो टेक्नोलॉजी विभाग ने नया जीवन दिया है। बायो टेक्नोलॉजी विभाग ने लेह-लद्दाख में पाए जाने वाले इस सोलो नामक पौधे का टिश्यू प्लांट (बेबी ट्यूब प्लांट) तैयार किया है। इसका वैज्ञानिक नाम रोडियोला है।

इसके गुणों के कारण ही यह धारणा है कि शायद यही वह संजीवनी बूटी है, जिसका जिक्र रामायण में है। इसका उपयोग ऑक्सीजन की कमी होने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने, कम दबाव वाले क्षेत्रों में रहने और बम या बायोकेमिकल से पैदा हुए रेडिएशन के प्रभाव को खत्म करने के लिए किया जाता है।

सोलो की तीन प्रजातियां-

यह बूटी शरीर को सीधे ऑक्सीजन ही नहीं देती, बल्कि उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ा देती है। इससे कम ऑक्सीजन वाले इलाकों में भी सैनिक आराम से रह लेते हैं। चिंता की बात यह है कि यह बूटी भारत से लुप्त होने को है। मुख्य रूप से सोलो की तीन प्रजातियां हैं। सोलो कारपो (सफेद), सोलो मारपो (लाल) और सोलो सेरपो (पीला)। सफेद सोलो का मुख्य रूप से औषधीय उद्देश्य से प्रयोग किया जाता है।

माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी जीवित रहेगा टिश्यू प्लांट-

जीएनडीयू के बायो टेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रताप कुमार ने बताया कि इस पौधे को तैयार करने के लिए लैब में लेह-लद्दाख जैसा माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तक तापमान रखा गया। धूल रहित लैब में पौधे को करीब तीन साल तक पोषक तत्व दिए जाते रहे। यह पौधा भारत के अलावा साइबेरिया में भी पाया जाता हैं। अगर लद्दाख में यह पौधा पूरी तरह से लुप्त भी हो जाएगा तो यूनिवर्सिटी लैब में यह सुरक्षित होगा। जीएनडीयू में तैयार इस पौधे की क्षमता लद्दाख में पाए जाने वाले पौधे से बेहतर है। इस रिसर्च को अमेरिकी वैज्ञानिकों ने भी सराहा है। इसे जीएनडीयू ने भारत सरकार के डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च (डीआइएचएआर) को सौंप दिया है।

2016 में मिला था प्रोजेक्ट-

डॉ. प्रताप कुमार ने बताया कि लेह स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च ने 2016 में उन्हें यह प्रोजेक्ट सौंपा था। प्रोजेक्ट के तहत सोलो पौधे का कृत्रिम रूप तैयार करने का लक्ष्य मिला था। जीएनडीयू अन्य विश्वविद्यालयों की तुलना में लेह-लद्दाख से अधिक नजदीक है, इसलिए इसे यह प्रोजेक्ट मिला। मान्यता है कि त्रेता युग में जब लक्ष्मण जी युद्ध में मूर्छित हो गए थे तब इसी बूटी के जरिये उन्हें बचाया जा सका था। डॉ. प्रताप कुमार बताते हैं कि अभी तक यह नहीं पता चल सका है कि यह संजीवनी बूटी है या नहीं, लेकिन इसके औषधीय गुणों के कारण ही मान्यता है कि वह संजीवनी बूटी यही पौधा रहा होगा।

(साभार- जागरण)

 

इसे भी पढ़ें-

हर घर में आसानी से मिल जाता है ये पत्ता, शुगर कंट्रोल के साथ आंखों के लिए भी है फायदेमंद

जानें, आयुर्वेद के अनुसार सर्दियों में सेहतमंद रहने के लिए क्या-क्या खाना चाहिए

Type 2 डायबि‍टीज के प्रबंध में बेहद कारगर है आयुर्वेदिक दवा

बिना दवा के भी आएगी गहरी नींद, अपनाएं ये तरीके

आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण नियम

 

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।